आओ कब्र खोदें

आओ कब्र खोदें
आओ कब्र खोदें

कई दिनों से झुन्नू लाल जी के घर से रात को निरंतर गैंती चलने की आवाजें आ रही थीं। ऐसा लगता था मानो वहां कोई बड़ी खुदाई का काम चल रहा हो। हर रात मेरी नींद टूट जाती और काफी देर तक करवटें बदलते हुए मैं सोचता रहता कि वहां चल क्या रहा है। मुझे झुन्नू लाल जी के घर से न तो किसी तरह की मरम्मत का काम चलने की ख़बर थी और न ही किसी नई निर्माण योजना का समाचार | महंगाई, बेरोजगारी और पिछले दस सालों से कम कमाई की मार झेलता हुआ मध्यम वर्ग राष्ट्रवाद और अपने स्वर्णिम इतिहास की अफीम चाट कर अभी भी गाढ़ी नींद में सो रहा था। पर निरंतर आने वाली आवाज़ों से उनींदे होने पर अक्सर मेरे लबों पर किशोर दा और लता मंगेशकर के हिंदी फिल्म आपकी क़सम में गाए गीत ‘करवटें बदलते रहें सारी रात हम, आपकी क़सम’ के बोल अनायास चलने लगते। मैं न जाने कितनी देर तक सोचता रहता कि उम्र के चौथे पड़ाव में रात को नींद टूट जाने के बाद मैं अपने महबूब की क़सम भी नहीं खा सकता। इस उम्र में बीवी से सिर्फ निबाह ही हो सकता है। मोहब्बत की गुंजाइश किसी राजनेता की ईमानदारी की तरह सात तालों में बंद हो जाती है। एक रात जब मुझसे नहीं रहा गया तो मैं यह सोचता हुआ झुन्नू जी के घर जा पहुंचा कि शायद अपने देश तथा ख़ानदान के गौरवमयी स्वर्णिम इतिहास की खोज और अनुसंधान के दौरान उनको किसी गुप्त खजाने का नक्शा मिल गया होगा या देश में हर साल दो करोड़ से अधिक नौकरियां पैदा होने के कारण अपने घर में कोई नया निर्माण कार्य या मरम्मत करवाने के लिए दिन में मजदूर नहीं मिल रहे होंगे तो रात में काम करवा रहे होंगे। यूं भी जिस देश का प्रधानमंत्री हर रोज़ अठारह या बीस घंटे काम करता हो वहां लोगों को ओवरटाईम काम करने की लत पड़ ही जाती है। ओवरटाइमिंग की इसी लत के कारण देश का मज़दूर वर्ग गरीबी से ऊपर उठ कर मध्यम वर्ग में घुसपैठ कर चुका है और मध्यम वर्ग कुछ ही सालों में अडानी और अम्बानी को टक्कर देने लगेगा। हालांकि पिछले कुछ सालों से काम और बेहतर जिंदगी की तलाश में डंकी रूट के ज़रिए अमेरिका और यूरोप के देशों में अवैध घुसपैठ करने वाले भारतीय युवाओं की संख्या में निरंतर बढोतरी हो रही है। इसी कड़ी में प्रधानमंत्री के लंगोटिये यार और अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल ही में अवैध भारतीय घुसपैठियों को हथकड़ी पहना कर सेना के विमान में भारत वापस भेजा था। जब मैंने दरवाज़ा खटखटाया तो पीप होल से झांकते हुए झुन्नू जी ने किवाड़ खोले । हर बार मेरे आगमन पर चहकने वाले झुन्नू जी इस बार थोड़ा परेशान दिखे। पूछने पर बोले, ‘यार! मुझे इसी बात का डर था कि रात को घर से आ रही आवाज़ों के चलते कहीं पड़ोसी न आ धमके। लेकिन तुम्हारे आने का अंदेशा सबसे ज्यादा था। ख़ैर ! आ ही गए हो तो बैठ कर बात करते हैं।’ इतना कहते हुए उन्होंने प्लास्टिक की एक कुर्सी उस कमरे के पास खींच ली जहां खुदाई का काम चल रहा था। मैंने उनसे पूछा कि आपने काम के लिए जो मज़दूर रखे हैं, वे मेरे आते ही कहां गायब हो गए। वह अपने होठों पर रहस्यमयी मुस्कान लाते हुए बोले, ‘कुछ काम खुद ही करने होते हैं। मैंने कोई मजदूर हायर नहीं किया। दरअसल मैं नहीं चाहता था कि किसी को इस खुदाई के बारे में पता चले। यह तुम थे तो मैंने दरवाज़ा खोल दिया। अगर कोई और होता तो दरवाज़ा नहीं खुलता ।’ उनके इस अपनत्व से भाव- विभोर होते हुए उनका धन्यवाद करते हुए मैंने पूछा कि क्या खुदाई की कोई ख़ास परियोजना है, हड़प्पा या मोहनजोदड़ो की तरह।’ वह उसी तरह अपने होठों पर रहस्यमयी मुस्कान बिखेरते हुए बोले, ‘यह उससे भी बड़ा काम है।

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