
नोट करती रहीं काम के, लेकिन हुजूर चस्पां थे इत्मीनान से। हिमाचल में सबसे पहले और सबसे आगे अगर नवाचार हुआ, तो यह ट्रांसफर एडजस्टमेंट का नित नया पैंतरा रहा । तू डाल-डाल, मैं पात-पात के इस खेल में कर्मचारी राजनीति सचिवालय से सड़क तक को गुमराह किया। यह एक भंवर है जहां प्रदेश का कर्म, राजनीति का भ्रम और राज्य का भविष्य बार-बार डूबा। यानी सरकारी नौकरी प्रदान करने में सत्ता जादूगर, कर्मचारी मालिक और राजनीति साम्राज्य बन गई। प्रदेश के संसाधन, उधार की परिक्रमा में ऐसे व्यय पर लट्ट रहे जो आज बजट की तासीर को कमजोर बनाता है। जहां पगार देने के लिए कर्ज लेना पड़ता हो, वहां यह इंतखाब घातक है, इसलिए अब प्रदेश को अपने ही बोझ से निजात चाहिए। सरकार की उदारता बहुत देखी और पिछले कई चुनावों से पूर्व सत्ता पक्ष ने बहलाने-फुसलाने या सियासी चमत्कार दिखाने की कोशिश में खजाने को पंगु बना दिया । बहरहाल कर्मचारी मसलों में क्रांतिकारी कदम चाहिए और यह हिम्मत दिखानी पड़ेगी, वरना यह प्रदेश अब अपने ही ढांचे के नीचे हड्डियां तुड़वा रहा है। अगर दो दर्जन कालेज और स्कूलों का एक सैंकड़ा हटाना या बंद करना पड़ रहा है, तो यह दौर खुद को समझाने और संभालने का है। जाहिर है सरकार को ये कदम लेने पड़ रहे हैं, वरना सियासी ढोल नगाड़े तो यही चाहते हैं कि बहते दरियाओं में किश्तियां बढ़ती रहें। बेशक आज हिमाचल जहां है, वहां विकास की मात्रात्मक पहचान ने नागरिक समाज को जागरूक किया। सामाजिक सुरक्षा के हर पहलू में घर-घर तक यह खत आया कि शिक्षा व चिकित्सा अब उनके नजदीक है, लेकिन विस्तार की यह परिभाषा अप्रासंगिक होने लगी तो तरक्की के विषय बदलेंगे, आगे बढने के पाठ्यक्रम बदलेंगे। एक पाठ्यक्रम शिक्षा ने दिया, लेकिन दूसरा अब हमारे आर्थिक संसाधन बना रहे हैं। आर्थिक संसाधनों का पाठ्यक्रम हमें विवश कर रहा है कि अब वास्तविकताओं को नजरअंदाज न करें। यह जवाबदेही मांग रहा है, वित्तीय कसौटियां भांप रहा है। फिजूलखर्चियों के चंगुल से बचा रहा है, तो सरकारी कार्यसंस्कृति में अनुशासन बढ़ाने की ताकीद कर रहा है। हिमाचल को अपने आर्थिक पाठ्यक्रम के पाठ बढ़ाते हुए हर विभाग के लक्ष्य तय करने होंगे। सरकारी क्षेत्र के हर कर्मचारी-अधिकारी के जज्बात अब वेतन-भत्तों की गणना नहीं, बल्कि दायित्व को औचित्यपूर्ण बनाना है। इसी परिप्रेक्ष्य में जिला से राज्य कैडर में परिवर्तित होने का अनुशासित पक्ष, प्रशंसनीय है। आर्थिक पाठ्यक्रम महज बजट का शीर्षासन नहीं, बल्कि कार्य संस्कृति के हर पल की गवाही है। अगर एचआरटीसी कैशलैस ट्रांजेक्शन से अपनी कार्य संस्कृति को सुधार रहा है, तो हर निगम की बचत में कर्मचारियों के हाथ-पांव फूलने चाहिएं। विभागीय दक्षता और कार्यप्रणाली की सफलता में ट्रांसफर का धोबीघाट होना चाहिए ताकि सनद रहे कि नौकरी सिर्फ अधिकार नहीं, दायित्व के जवाबदेही है। हिमाचल पर्यटन निगम की हर इकाई का दारोमदार उसे लाभकारी बनाने में होना चाहिए, न कि पर्चियों पर सरकारी नौकरी को सियासी सेवादार बनाने में प्रशस्त होना पड़े।
