पूर्वोत्तर भारत में चीन समर्थित अलगाववाद को बड़ा झटका

पूर्वोत्तर भारत में चीन समर्थित अलगाववाद को बड़ा झटका

पूर्वोत्तर भारत में चीन समर्थित अलगाववाद को बड़ा झटका

नई दिल्ली। मणिपुर के सबसे पुराने अलगाववादी संगठन यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्र ंट (यूएनएलएफ) के शांति समझौते और उसके सशस्त्र कैडर्स के हथियार डालकर मुख्यधारा में लौटने को पूर्वोत्तर भारत में चीन समर्थित अलगाववाद को बड़ा झटका माना जा रहा है। पैन मंगोलियन मूवमेंट के उद्देश्य के साथ 1964 में बने यूएनएलएफ पूर्वोत्तर भारत में कई अलगाववादी संगठनों के लिए प्रेरणास्त्रोत रहा है। चीन के साथ करीबी संबंधों के साथ यूएनएलएफ का घोषित उद्देश्य मणिपुर को भारत से मुक्त कर उसमें म्यांमार के कबोव घाटी को शामिल करना रहा है। पूर्वोत्तर भारत के अलगाववादी संगठनों के साथ ही यूएनएलएफ के नक्सलियों के साथ भी करीबी रिश्ते रहे हैं और नक्सलियों को हथियार सप्लाई के आरोप में उसके सशस्त्र विंग पीपुल्स लिबरेशन आर्मी आफ मणिपुर के दो कैडर गिरफ्तार भी किये गए थे। केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यूएनएलएफ के मार्फत भारत के अलगाववादी संगठनों को चीन की मदद पहुंचाने की बात साबित हो चुकी है। 2011 में दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल में नक्सलियों को हथियार बेचने और उन्हें ट्रेनिंग देने के आरोप में पीपुल्स लिबरेशन आफ मणिपुर के दो कैडर को गिरफ्तार कर चुकी है। एजेंसियों के अनुसार पीएलए के मार्फत चीन नक्सलियों को हथियार सप्लाई करता रहा है, जो सुरक्षा एजेंसियों की मुस्तैदी के बाद बंद हुआ। उम्मीद की जा रही है यूएनएलएफ के साथ शांति समझौता पूरे पूर्वोत्तर भारत में स्थायी शांति और अलगाववाद के पूरी तरह से समाप्त होने का मार्ग प्रशस्त करेगा। मणिपुर और नगालैंड को छोड़ दें तो अन्य राज्यों में सक्रिय अलगाववादी संगठन पहले ही शांति समझौते पर हस्ताक्षर कर चुके हैं और उसके कैडर हथियार समर्पण कर मुख्यधारा में लौट चुके हैं। परिणामस्वरूप पूर्वोत्तर भारत में हिंसक घटनाओं में 73 फीसद, सुरक्षा बलों के जवानों की मौत में 72 फीसद और आम नागरिक की मौत में 83 फीसद की कमी आ चुकी है। नगालैंड में नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल आफ नगालैंड - आइजक- मुइवा (एनएससीएन-आईएम) के साथ शांति समझौते के फ्रेमवर्क पर 2015 ही सहमति बन चुकी है। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि यूएनएलएफ के शांति समझौते के बाद एनएससीएन (एनएससीएन-आईएम) के साथ भी समझौता वार्ता में तेजी आएगी। दोनों अलगाववादी संगठनों के साथ बहुत ही करीबी संबंध रहे हैं और एनएससीएन ने यूएनएलएफ के 1990 में बने भूमिगत विंग पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को ट्रेनिंग दी थी। पूर्वोत्तर भारत में शांति स्थापित करने में सबसे बड़ी चुनौती मणिपुर बनी हुई थी और मई में भड़की हिंसा ने मैतेई और कुकी के बीच स्पष्ट विभाजन कर दिया था। मैतेई हितों का दावा करने वाले यूएनएलएफ की अहम भूमिका थी। जाहिर है इसके बाद अन्य मैतेई उग्रवादी गुटों पर भी हिंसा का रास्ता छोड़ने पर दबाव बनेगा। कुकी उग्रवादी संगठनों के साथ युद्धविराम समझौता 2008 से ही है और उन्हें हथियार डालकर स्थायी शांति के समझौते पर लाने के लिए बातचीत चल रही है। इसके बाद मणिपुर में स्थायी शांति की उम्मीद की जा सकती है।

Skip to content