बरपेटारोड : नानीबाई रो मायरो की संगीतमयी कथा का भव्य शुभारंभ

बरपेटारोड : नानीबाई रो मायरो की संगीतमयी कथा का भव्य शुभारंभ
बरपेटारोड : नानीबाई रो मायरो की संगीतमयी कथा का भव्य शुभारंभ

बरपेटारोड। पुण्य धरा बरपेटारोड के श्री राधाकृष्ण ठाकुरबाड़ी प्रांगण में तीन दिवसीय संगीतमयी नानीबाई रो मायरो कथा का भव्य शुभारंभ आज परम श्रद्धेय पं. श्री मालीराम जी शास्त्री के पावन श्रीमुख से हुआ । इस दिव्य आयोजन के यजमान श्री गोपालराम अग्रवाल एवं श्रीमती शकुंतला देवी अग्रवाल ने विधिवत पूजन-अर्चन कर कथा का शुभारंभ कराया। समाज के सैकड़ों श्रद्धालु भक्तजन इस पावन आयोजन में सम्मिलित होकर कथा रस का आनंद ले रहे हैं । भव्य पंडाल, सुंदर विद्युत साज-सज्जा और भक्तिपूर्ण वातावरण से पूरा परिसर आध्यात्मिक ऊर्जा से सराबोर हो गया है। दोपहर 3 बजे से सायं 6 बजे तक कथा प्रवाहित हो रही है, जिसमें श्रद्धालु भक्तगण बड़ी संख्या में भाग ले रहे हैं। आज प्रथम दिवस की कथा में भक्त नरसीजी की अपार भक्ति और प्रभु कृपा का भावपूर्ण वर्णन किया गया। महाराजश्री ने कथा में कहा कि हरिया हर से प्रीत कर जो, किसान की रीत । दाम गुणो ऋण घणो, तो भी खेत से प्रीत। इस संदर्भ में उन्होंने जूनागढ़, गुजरात में जन्मे भक्त नरसी मेहता के जीवन प्रसंगों का विस्तृत वर्णन किया। उन्होंने बताया कि नरसी जी महाराज के माता-पिता लक्ष्मी गोरी एवं कृष्ण दामोदर थे, परंतु मात्र पांच वर्ष की उम्र में ही वे मातृ स्नेह से वंचित हो गए। जन्म से मूक (गूंगे) नरसीजी को संत कृपा से वाणी प्राप्त हुई, और तभी से वे राधा-कृष्ण भक्ति में लीन हो गए। महाराज श्री ने यह भी कहा कि साधु और संत में बड़ा अंतर होता है – साधु वह होता है जो भगवान से प्रेम करता है, और संत वह होता है जिसे स्वयं भगवान प्रेम करते हैं। कथा में यह भी वर्णन हुआ कि भक्त नरसीजी की अपार भक्ति के कारण उनके विरोधी भी बढ़ने लगे। गांववालों ने ईर्ष्या के चलते नरसीजी की परीक्षा लेने के लिए एक संत भेजा, परंतु भगवान स्वयं सांवरा सेठ बनकर नरसीजी की मंडी में आए और उनकी भक्ति से प्रसन्न हो गए।

बरपेटारोड : नानीबाई रो मायरो की संगीतमयी कथा का भव्य शुभारंभ
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