महावीर स्वामी की शिक्षाओं से क्या सीखें

महावीर स्वामी की शिक्षाओं से क्या सीखें
महावीर स्वामी की शिक्षाओं से क्या सीखें

की भीड़ में, ट्रैफिक के शोर में, भागते समय के पहियों के नीचे, क्या कभी रुक कर हमने अपने भीतर झांकने की कोशिश की है ? जिस आत्मा के साथ हम इस दुनिया में आए, क्या वह आत्मा अब भी वैसी ही शांत, निर्मल और उज्ज्वल है ? शायद नहीं। और यही वह क्षण है जब महावीर स्वामी की वाणी की गूंज हमें भीतर तक झकझोर देती है। उन्होंने ही कहा था- “परिग्रह (मोह, लोभ) ही दुखों की जड़ है । ” महावीर स्वामी, जिनका जन्म राजमहलों में हुआ, उन्होंने वह सबकुछ त्याग दिया, जिसे हम जीवन की उपलब्धि मानते हैं। क्यों ? क्योंकि उन्होंने जान लिया था कि बाहरी दुनिया की दौलत हमें भीतर की शांति नहीं दे सकती। आज हम भी उन्हीं महलों के नए रूप- बड़ी गाड़ियां, मोबाइल, चमकदार कपड़े, सोशल मीडिया की वाहवाही आदि में उलझे हैं। लेकिन क्या इन सबसे हमें सच्चा सुकून मिलता है ? शायद नहीं। महावीर की पहली और सबसे बड़ी शिक्षा है – “अहिंसा परमो धर्मः ” हम सोचते हैं, “मैंने किसी को मारा नहीं, तो मैं अहिंसक हूं।” लेकिन क्या यह पूरा सच है? हमारी वाणी की हिंसा – किसी को कटु बोल देना, किसी का अपमान कर देना, किसी की निंदा करना – ये सब हिंसा नहीं है क्या ? आज के इस असहिष्णु समय में, जहाँ छोटी- छोटी बातों पर रिश्ते टूट रहे हैं, वहां अगर हम केवल महावीर की अहिंसा को जी लें, तो दुनिया कितनी सुंदर हो सकती अहिंसा केवल तलवार न उठाना नहीं है, विचारों, वाणी और व्यवहार से किसी को आहत न करना भी अहिंसा है। दूसरी महत्वपूर्ण सीख है – “सत्य” । महावीर है।कहते हैं, “जीवन में जो भी कहो, सोच- समझ कर कहो, और वही कहो जो सच हो।” लेकिन क्या हम ऐसा करते हैं? हम अपने बच्चों से, मित्रों से, जीवन साथी से, ऑफिस में – हर जगह झूठ का सहारा लेते हैं । कभी डर के कारण, कभी अपने स्वार्थ के कारण। पर क्या यह झूठ हमें सुख देता है ? नहीं। हर झूठ के पीछे छिपा डर, हमारी आत्मा को कचोटता रहता है। सत्य की राह पर चलकर ही मन हल्का, शांत और मुक्त होता है। महावीर की तीसरी शिक्षा है – ” अपरिग्रह ” (त्याग) आज की दुनिया में हम जितना जमा करते हैं, उतने ही उलझते जाते हैं। मकान, गाड़ी, पैसे, कपड़े, गहने … सब जमा करते हैं, फिर भी मन खाली है। महावीर कहते हैं, “जितना छोड़ोगे, उतना ही हल्के हो जाओगे ।” क्या आपने कभी पुराने कपड़े, बेकार सामान, फालतू की चीजें दान की हैं? उस खालीपन में जो सुकून है, वही असली धन है। आज अगर हम अपने जीवन से “फालतू” चीजें – न केवल भौतिक वस्तुएं, बल्कि बेकार की सोच, गुस्सा, नफरत – हटा दें, तो हमारे पास एक खाली, सुंदर जगह बचती है, जहां शांति का वास हो सकता है। संयम, महावीर की चौथी शिक्षा है। आ हमारी दुनिया असंयम की दुनिया बन चुकी है – खाने में, बोलने में, खर्च करने में, रिश्तों में। हर चीज़ ‘तुरंत चाहिए’ की दौड़ में हम संयम खो चुके हैं। अगर हम बोलने में संयम रखें, तो न लड़ाई होगी, न रिश्ते टूटेंगे। खाने में संयम रखें, तो शरीर स्वस्थ रहेगा। पैसों के खर्च में संयम रखें, तो चिंता नहीं होगी। महावीर की ये पंक्तियां हमें रोज याद करनी चाहिए- “मनुष्य खुद अपने भाग्य का निर्माता है ।

महावीर स्वामी की शिक्षाओं से क्या सीखें
महावीर स्वामी की शिक्षाओं से क्या सीखें