
हम आश्चर्य में हैं और अपनी ही चेतना से सवाल कर रहे हैं। हम राम नवमी सहज और सौहार्द के साथ क्यों नहीं मना सकते ? राम नवमी की शोभा यात्रा और अन्य आयोजनों के लिए उच्च न्यायालय से अनुमति लेने की नौबत क्यों आती है ? पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार राम नवमी पर रोड़े क्यों बिछाती रही हैं? ममता भी हिंदू हैं। राम उनके भी हैं। राम पूरे ब्रह्मांड में प्रत्येक प्राणी के हैं । राम अवतरित पुरुष हैं। ममता बनर्जी मां काली और दुर्गा की तो पूजा करती रही हैं। फिर ‘जय श्रीराम’ का उद्घोष उन्हें गाली-सा क्यों लगता है और वह अपना संयम खोने लगती हैं? साल-दर-साल राम नवमी के आयोजनों पर सरकारी प्रतिबंध क्यों लगाए जाते रहे हैं? संविधान ने ‘धार्मिक स्वतंत्रता’ का मौलिक अधिकार हिंदुओं, राम भक्तों को भी प्रदान किया है । क्या राम की शोभा यात्रा आयोजित करना और आस्थाओं के साथ त्योहार मनाना भी गुनाह या पाप है ? ममता बनर्जी बंगाल की मुख्यमंत्री हैं, लिहाजा प्रत्येक नागरिक जन प्रतिनिधि हैं, संवैधानिक अभिभावक हैं। सरकार के नाते यह उनका दायित्व है कि औसत नागरिक उल्लास और उमंग के साथ अपने पर्व मना सके, लेकिन बंगाल ही नहीं, बिहार, उप्र, महाराष्ट्र और झारखंड सरीखे राज्यों में भी, राम नवमी के दिन, राम के नाम पर ही, एक खौफनाक तनाव पसरा रहा। वहां सुरक्षा की पहरेदारियां बिठाई गईं। उप्र के तो 42 जिलों और पश्चिम बंगाल के 10 संवेदनशील जिलों में ‘हाई अलर्ट’ घोषित करना पड़ा। उप्र में संभल क्षेत्र ‘सांप्रदायिकता का कुरुक्षेत्र’ क्यों बन गया है ? बंगाल के हावड़ा इलाके और उप के कई शहरों में सुरक्षा बलों, पुलिस को ‘फ्लैग मार्च’ निकालने पड़े, चप्पे-चप्पे पर पहरे और घेराबंदियां बिठा दी गईं। ड्रोन चलाए गए, सीसीटीवी से भी निगरानी करनी पड़ी। यह ‘राम नवमी’ त्योहार का दिन था अथवा किसी आतंकी हमले की आशंका थी? ये सुरक्षा घेरे सहज नहीं लगे। आखिर इतने व्यापक तनाव के कारण क्या थे? क्या देश में धार्मिक सहिष्णुता समाप्त हो चुकी है ? होली बनाम अलविदा जुमा, नवरात्रि बनाम ईद की नमाज सरीखे सांप्रदायिक टकराव के हालात क्यों बन रहे हैं? क्या सरकारें ही नाकाम हैं? या सरकारें ही दंगेनुमा स्थितियां पैदा करवा रही हैं ? आखिर देश में यह कब तक चलता रहेगा ? बंगाल में ममता सरकार बीते सालों में भी राम नवमी, दुर्गा पूजा, हनुमान जयंती सरीखे हिंदुओं के त्योहारों पर वर्जनाएं थोपती रही हैं। अंततः अदालत की शरण में जाना पड़ता है। ममता बनर्जी ने यह आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार दंगे भडका रही है। इनसान को इनसान से लड़वा रही है। इसकी प्रतिक्रिया में बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने भाजपा एवं हिंदू कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि सभी अपनी गाड़ी या बाइक पर भगवा झंडा लगा कर पूरा दिन शहर में घूमते रहें। दुकानों पर भी अपनी पहचान का झंडा लगाया जाए। ऐसे बयान उत्तेजक साबित हो सकते हैं। दावा किया गया कि हजारों शोभा यात्राएं निकाली जाएंगी और करीब 5000 जगहों पर श्रीराम महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। प्रशासन और अदालत के निर्देश हैं कि शोभा यात्रा में कोई भी हथियार लेकर शामिल नहीं होगा। क्या राम नवमी हथियार लेकर मनाई जाती रही है ? दरअसल ममता और भाजपा दोनों ही वोट बैंक को धुरवीकृत करने और अंततः चुनाव जीतने का खेल कर रहे हैं। अनुमान है कि शोभा यात्राओं में करीब 1.5 करोड़ हिंदुओं ने शिरकत की। ये आयोजन प्रतीकात्मक भी हो सकते थे।
