साहब का नाच…

साहब का नाच...
साहब का नाच…

एसडीएम साहब खूब नाचे । समारोह सरकारी, मंच सरकारी और सामने गायक भी सरकारी था, इसलिए नाचना उनके अधिकार क्षेत्र में था। अधिकारी पर अधिकार और अधिकार पर अधिकारी के नियंत्रण का अक्सर उसके नाच से पता चलता है। वैसे आजकल अधिकारियों या प्रशासनिक अधिकारियों को खुद को वश में रखना कहां संभव है । वे जहां-तहां नाच सकते हैं, बशर्ते उन्हें बताया जाए कि कब नाचना, कहां नाचना और कितना नाचना है। अधिकारियों को यह श्रेय तो दिया जा सकता है कि कई बार ये नाच-नाच में कहीं से कहीं पहुंच गए। ये परवाह नहीं करते कि उनके नाचने की वजह क्या या अदा क्या थी। वैसे यह व्यक्ति जब तक एसडीएम नहीं बना था, नाच के सख्त खिलाफ था । सोचता था पद पर पहुंचते ही सारे फिजूल के नाच बंद कर देगा, लेकिन अब उसे खुद को साबित करने के लिए नाचना पड़ता है। होली समारोह के मुख्यातिथि मंत्री थे, इसलिए नाचा ताकि वह अपनी अंगुलियों का एहसास करते। वह अब विधायकों, मंत्रियों और मुख्यमंत्री तक की अंगुलियों को ही सुशासन मानता है। नेताओं की अंगुली उसके दायित्व को कहीं भी नचा सकती है। इसलिए वह देखते ही देखते कुशल नर्तक बन चुका है। वहां यूं तो हर अधिकारी नाच रहा है या नाच सकता है, यह दिखा रहा है, लेकिन उसने हुनर को अपनी तकदीर बना लिया। उसे कई बार शक हुआ कि वह नाचता नहीं, लेकिन जब उसके आगे नाचती हुई जनता भरोसा दिलाती है, तो यकीन हो जाता है कि दरअसल नाच-नाच में ही देश आगे सरक रहा है। कोई मस्जिद के आगे नाचे तो कोई हिंदू निकल आता है, नेता के आगे अधिकारी नाचे तो अव्वल निकल आता है । नाचने में हर जगह प्रतिस्पर्धा है, क्योंकि जहां नाचते वहीं मंच पैदा हो जाता है। विपक्ष ने सरकार को पूरी तरह घेर रखा था। आरोप था कि सत्ता पक्ष का आंगन पूरी तरह टेढ़ा है, इसलिए उनकी तरह इस सरकार में नाच मुकम्मल नहीं है। विपक्ष को आंगन की चिंता थी कि कहीं यह और टेढ़ा हो गया, तो सत्ता में लौट कर वे इन्हीं अधिकारियों को पहले की तरह नचाएंगे कैसे । वर्तमान मुख्यमंत्री ने विपक्षी आरोपों को खारिज करके अपने आंगन में सभी अधिकारियों को नचाया, लेकिन मन में विचार किया कि क्यों न इनके नाच में कुछ नया जोड़ा जाए। मुख्यमंत्री को चलाने वाले वरिष्ठ अधिकारी को पास बुलाकर कहा कि नाच में कुछ नया जोड़ो । अधिकारी ने अपने घुंघरू बजाते हुए कहा, ‘हुजूर ! यूं तो खजाना पूरी तरह खाली है, लेकिन कुछ चांदी के सिक्के बचे हैं। इनसे काम लायक घुंघरू बना कर अधिकारियों को पहना देते हैं।’ सरकार ने मोहर लगे घुंघरू अधिकारियों को पहना दिए । अब बिना नाचे भी घुंघरू बजने लगे । जनता मंत्रमुग्ध हो गई। लोग अपने काम के लिए प्रशासन के पास जाते, लेकिन बजते घुंघरू सुनकर ही प्रसन्नता के भाव लिए लौट जाते। उन्हें खुशी है कि लोकतंत्र अब घुंघरू की तरह बजने लगा है। मुख्यमंत्री अब खुशी के लिए किसी भी अधिकारी को जनता के बीच नचा देते और जनता भी इस नाच को परंपराओं से जोडकर अभिनंदन करती रहती । एक दिन जनता ने सुना कोई रात को भी घुंघरू बजा रहा है। उसे लगा अब तो सरकार रात को भी काम कर रही है, लेकिन घुंघरू सतर्क कर रहा था। लोग नींद में घरों से बाहर आए तो पता चला कि कोई किसान अपने बैलों को जोतने के लिए बचता – बचाता जा रहा था कि उनके गले से बंधे घुंघरू बज गए। सरकार को यह मंजूर नहीं था कि जनता बैलों और अधिकारियों के घुंघरूओं को एक ही अर्थ से सुनने लगे, किसान बैलों से घुंघरू हटाने का ऐलान हो गया ।

साहब का नाच...
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